| तुझं खरं की माझं खरं |
| मनाचा भुंगा जीवाला या |
| असं रोज कुरतडत राहतो. |
| सत्याचं -असत्याचं मनात |
| जुंपतं रोज तुंबळ... अन- |
| कुणीतरी अज्ञात रक्षस |
| सुखलेल्या या जख्मांना |
| पुन्हा फ़ोडत राहतो. |
| कसं ! जगावं तरी कसं? |
| बाहेरच्या या जगात |
| नाही कुणालाच कळत |
| असा मी का चिडत राहतो. |
| कुण्या जन्माच हे पाप, |
| कि, जगण्याचा हा शाप? |
| कुणी नसताना ही माझा मी |
| मलाच, का कुडत राहतो? |
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