| तुला खरं सांगू का? |
| मी अंधारात असलो तरी, |
| शब्दच विजा घेऊन येतात. |
| अन माझी चराम आसवं |
| ओळी ओळीत लखलखतात |
| मी नेहमीच हसतो, |
| याचं तुला नेहमीच कोडं! |
| पण तुला का ठाऊक, |
| मनात असतं दु:खही थोडं |
| लोक म्हणतात मला, |
| मी जगावेगळा वेडा, |
| पण खरे कुणास ठावे? |
| मी तर एक पुस्तकी किडा. |
| आता तू म्हणशील, |
| काय खरं नि काय खोटं! |
| माणसं तर जगतात, |
| भरायला नुसती पोटं. |
| कधी कुणी म्हणतं |
| सत्य ही असतं खोटं |
| यावर तुच सांग आता, |
| किती वाजवायचं मी |
| उगा सत्याचं धोटं |
Friday, September 14, 2012
धोटं
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कविता
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