| कविता गझला झाल्या नुसत्या बेगडी गं बेगडी |
| काय करावे मला कळेना, कसे वाचावे मला कळेना |
| शब्दासंगे डोळे नुसते रोज खेळती फुगडी गं फुगडी ----------॥१॥ |
| जशी नेसावी नवंवधूने रोज नवी नवीच लुगडी |
| तशा या गझला तशा कविता रोजच येती घडोघडी |
| शब्दासंगे डोळे नुसते रोज खेळती फुगडी गं फुगडी ----------॥२॥ |
| एकच असतो गोमटा पण माबोलीवर किती आयडी |
| नेम नाही इथे कुणाचा कधी कुणाची फिरेल गाडी |
| शब्दासंगे डोळे नुसते रोज खेळती फुगडी गं फुगडी ----------॥३॥ |
| झुक झुक झुक झुक फिरते शब्दांची ही रेलगाडी |
| काय सांगावे कधी इथे उडेल कुणाची रेवडी |
| शब्दासंगे डोळे नुसते रोज खेळती फुगडी गं फुगडी. -----------॥४॥ |
| प्रतिसादाच्या अंगणी कुणी रोज घालते लंगडी |
| शब्दांच्या मग झाडून फैरी राख सांडते शेगडी |
| शब्दासंगे डोळे नुसते रोज खेळती फुगडी गं फुगडी. -----------॥५॥ |
| फू बाय फू... फुगडी गं ....फुगडी गं ....फुगडी गं....... फुगडी |
Friday, September 14, 2012
फू बाय फू... फुगडी गं फुगडी
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment