साहित्य प्रकार

Monday, August 6, 2012

पाऊस आणि मन

छेडीतो सतार, इंद्राचा गंधार
झुले मेघमल्हार, देऊन हूंकार.

ओथंबले मेघ, कोसळल्या धारा,
ओलावली माती, गंधाळला वारा.

खळाळले पाणी, ओसंडला पुर
धुंदावल्या कळ्या, नाचु लागे मोर.

उसवले मन, आठवला पुर
उलगल्या गाठी, सुठे गुंतलेले दोर.

गजबजले पार, मनातले घर
उघडता दार, गेली उडून पाखरं.

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पुर्व प्रसिध्दी :- दिवाळी अंक ' प्रतिभा' २००८
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